Tuesday, October 09, 2007

भ्रमर

एक अनजान बगीचे में
पागल भ्रमर भ्रमण करता
मिलन सुन्दर कली का हो
बस यही आस क्षण क्षण करता


यौवन पंख उमंग सहित
उस प्रेमी ने उड़ान भरी
हर अंग अंग खिला फूलों का
खिल खिल कर मुस्कान भरी


आलिंगन पर उन पुष्पों का
न उसके मन को था भाया
प्रेम-वश था विवश भ्रमर के
दिल में इक सुन्दर काया


मदमस्त भ्रमर वो मन मेरा
तरसे है प्रेम कली पावन
रंग भर दे सुन्दरता जिसकी
मोहित कर दे मेरा जीवन