Saturday, September 16, 2023

सनातन

 मिट सकता है नहीं सनातन कभी किसी के कहने से।


आदि काल से जीवित जो, चिरञ्जीव है शाश्वत जो,

युगों युगों से करता आया मोक्ष मार्ग प्रकाशित जो। 

कभी थका है दीप भला वो ज्ञान ज्योति का जलने से।

मिट सकता है नहीं सनातन कभी किसी के कहने से।


जिसपर अत्याचार हुआ, झूठ-कपट का वार हुआ,

तत्त्वों का तथ्यों का कण कण रक्त-सिन्धु का धार हुआ।

रोक सका है क्या कोई आदित्य सत्य का उगने से।

मिट सकता है नहीं सनातन कभी किसी के कहने से।


जब भी पापी गुर्राया, खड्ग पवन में लहराया,

कट कर उसका शीर्ष गिरा है अहंकार जिस पर छाया।

कभी झुका है शूर भला ही युद्ध धर्म का लड़ने से। 

मिट सकता है नहीं सनातन कभी किसी के कहने से।


मथुरा और अवध टूटा, सोमनाथ को भी लूटा,

बन्द कुएं में छिपा हुआ नन्दी का विश्वनाथ छूटा।

रोक सका है क्या कोई देवाल भक्ति का बनने से।

मिट सकता है नहीं सनातन कभी किसी के कहने से।

Thursday, July 20, 2023

हताशा


कुछ इस तरह लड़ते रहे हम उम्र से, 
अब ज़ोर लगाने की भी ताक़त न रही। 

छूटता रहा जो मेरे हाथ में था,     
उसे पकड़ पाने की भी चाहत न रही। 

बनाकर हमसफ़र जो ग़म को हम चले,
खुश होकर जीने की भी आदत न रही।

किस से मात खाते किस्मत के मारे,
किस्मत बदल जाने की भी किस्मत न रही। 

थक गया चढ़कर नाकामी की चोटी,
अब कुछ कर जाने की भी हसरत न रही।

Friday, January 13, 2023

शुतुरमुर्ग का शासन


इक संस्थान निराला जिस में नगरी एक बसायी थी। 

उदयभानु के वर्णिम जैसी शोणित इष्टि सजायी थी। 

सुन्दरता जिसकी दर्शन करने परदेसी आते थे। 
लाल-हरित की क्रीड़ाओं में मन्त्र मुग्ध हो जाते थे। 

इस शोभा के उदर में पर दुःख के सङ्केत उजागर थे। 
चण्डवात से घिरी हो लहरें आकुलता के सागर में। 

जन्तु जन्तु को काट रहा भीकर परिवेश विराट रहा।
त्राहि त्राहि कर प्रजा परन्तु सुप्त मूक सम्राट रहा। 

होता था जलपात धरा पर जब श्रावण के मेघों का,
अश्रुधार में बह जाता था वाहन सबके सपनों का। 

निद्रा ने तज दिया सभी का साथ शान्ति ने छोड़ दिया। 
शोर धूम रज कल्मषजल ने बांध स्वास्थ्य का तोड़ दिया। 

नियम हुए विस्मरित अराजकता का रूप हुआ गम्भीर। 
जिसको भेद नहीं कर पाया कोई अनुशासन का तीर। 

व्याकुलता सन्ताप दृश्य हर ओर दिखाई दे जाता।
शोक वेदना का ऊंचा चीत्कार सुनाई दे जाता। 

कोलाहल की ज्वाला का उस नगरी को आलिङ्गन था   
पर भूमि में शीर्ष गढ़ाये बैठा उसका राजन था।