एक अचानक दिन यूं मेरी,
भेंट हुई एक सज्जन से,
बोले करनी बात आप से
सोचा था बहुत दिन से।
करते क्या हो आप काम जी,
क्या ही आप पढ़ाते हो?
सच्चाई की दाल में श्रीमन
कितना झूठ मिलाते हो।
मैनेजमेंट विज्ञान नाम से
ना बनता विज्ञान कोई,
ऐसे गोरखधंधे से अब
ना रहता अनजान कोई।
इसमें क्या कठिनाई है यह
क्रय-विक्रय का है खेला,
सभी निपुण है इस क्रीड़ा में
बड़ी कम्पनी या ठेला।
कौशल का भी काम नहीं,
सभी भाग्य पर निर्भर है।
फिर समझाएं हमें आपकी
आवश्यकता क्योंकर है?
यदि होता विज्ञान विषय यह
इसमें विजय निहित होता,
बिन बाधा अवरोध सफलता
सदा सर्व निश्चित होता।
नहीं उन्नति मार्ग दिखाते
न भविष्य का अनावरण।
जो बीता उसको समझाने
क्या लाभ होगा श्रीमन?
सच तो है असमर्थ आप हैं
देने कोई आश्वासन,
अनुपयुक्त है व्यर्थ निरर्थक
लगे आपके सब प्रवचन।
सुनी जब गर्जना सज्जन की
सहम गया मैं तो क्षण भर,
ज्ञानव्योम पर उड़ता सपना
सहसा बिखर गया गिर कर।
पर समेट टुकड़े सपनों के
मैंने फिर आकार दिया,
उस आलोचक की बातों पर,
थोड़ा गहन विचार किया।
वस्तु नहीं विज्ञान, महोदय,
ग्रहण इसे कर ना सकते,
निर्विराम प्रक्रिया है यह तो,
चले निरन्तर ना थकते।
अवलोकन निसर्ग का है यह
सच्चाई का अन्वेषण,
संशोधन है यह यथार्थ का
कर तथ्यों का विश्लेषण।
छिपे सृष्टि के चित में सारे
गुप्त रहस्य समझना है ,
फिर उनके आधार पे श्रीमन
सिद्धान्तों को रचना है।
बहुत प्रयोग-परीक्षण कर के
संचय कर परिणामों का,
तब विज्ञान प्रक्रिया भू पर
उद्गम होता नियमों का।
यही नियम आधारशिला हैं
इस प्रपञ्च के बोधन के,
ऐसे ही विज्ञान बने हैं ,
सारे विषय प्रबन्धन के।
नहीं सरल व्यवहार समझना,
मानव विचित्र प्राणी है,
लगा सही अनुमान सके ना
ऐसा कोई ज्ञानी है ।
फिर भी करते यत्न सदा हम
यही हमारी है आशा,
सतत प्रयास व्यवस्थित, बंधु,
है विज्ञान की परिभाषा।
सत्य मार्ग पर है प्रयाण,
विज्ञान कोई गंतव्य नहीं,
इसी राह पर चलते रहना
है विज्ञान का लक्ष्य यही।
सुनकर मेरी बात महाशय
भाव प्रवाह में बह बैठे,
पाप हुआ हम गुस्से में जो
इतनी बातें कह बैठे।
सीख मिली जो आज आपसे,
गलती अभी सुधारूंगा,
अपने सारे बच्चों से मैं
M.B.A. करवाऊंगा।