Monday, March 24, 2025

मोबाइल युग

ये इंसान क्यों सर झुकाए खड़ा है?
नज़र अपनी किस पे गढ़ाए खड़ा है?

जहां भी मैं देखूं यही है नज़ारा,
बच्चा जवां या बुढ़ापे का मारा,
आते हैं जाते कोई सुध कहां है,
मदहोश ऐसे सभी अब यहां हैं,
दुनिया को अपनी भुलाए खड़ा है।
ये इंसान क्यों सर झुकाए खड़ा है?
नज़र अपनी किस पे गढ़ाए खड़ा है?

उंगली से अपनी है करता इशारे,
ऐसे समय अपना सारा ग़ुज़ारे,
कहीं कोई टिन–टिन कहीं कोई टन–टन,
घड़ी दो घड़ी ढूंढता मनोरंजन,
मिथ्या में खुद को छुपाए खड़ा है।
ये इंसान क्यों सर झुकाए खड़ा है?
नज़र अपनी किस पे गढ़ाए खड़ा है?

बेड़ी नहीं है नहीं कोई बंधन,
फिर किस गुलामी में जीता है जीवन,
खुशी कोई उसको तो मिलती नहीं है,
कोई वेदना भी संभलती नहीं है,
नशे में ये खुद को डुबाए खड़ा है।
ये इंसान क्यों सर झुकाए खड़ा है?
नज़र अपनी किस पे गढ़ाए खड़ा है?

संभावना अनगिनत हाथ में है,
मौका ये विज्ञान का हाथ में है,
चाहे तो पा ले वो संसार सारा,
मन का मिटा दे वो अंधेर सारा,
मौका ये फिर क्यों गंवाए खड़ा है?
ये इंसान क्यों सर झुकाए खड़ा है?
नज़र अपनी किस पे गढ़ाए खड़ा है?

अपनों से बातों की फ़ुरसत नहीं है,
इक दूसरे की ज़रूरत नहीं है,
मिटा डालने को अपनी निशानी,
खुद की तबाही की लिखने कहानी,
तरकीब क्यों ये बनाए खड़ा है?
ये इंसान क्यों सर झुकाए खड़ा है?
नज़र अपनी किस पे गढ़ाए खड़ा है?