Sunday, July 27, 2025

बोली बनाम धर्म


आया वो करने व्यापार,
पालन को अपना परिवार,
थोड़े पैसों से करने को
अपने प्रियजन का उद्धार। 

कश्मल सूकर-टोल रहा,
पूति वायु में घोल रहा,   
वही शत्रु है क्योंकि वह न 
मेरी बोली बोल रहा।  

आंखों में है खून सवार, 
होठों पर गूंजी ललकार, 
हरने मेरे प्राण आ रहा 
हाथों में लेकर हथियार। 

गुस्से में वह डोल रहा,
गुनाह मेरे तोल रहा,
वही मित्र मेरा क्योंकि वह
मेरी बोली बोल रहा। 

विनय सरल वो करे नमन,
हाथ जोड़ कर अभिनन्दन,
आशा की मुस्कान होंठ पर,
कर व्यतीत अपना जीवन। 

भर्त्सन भरा कपोल रहा, 
आहत मुख बेडौल रहा,
वही शत्रु है क्योंकि वह न 
मेरी बोली बोल रहा।  

कर अभीत वह चीर हरण, 
पत्नी हो या मात बहन,
नहर, फ्रीज, पेटी में फेंके,
या भूमि में करे दफ़न। 

मान के धागे खोल रहा,
गरिमा का न मोल रहा,
वही मित्र मेरा क्योंकि वह
मेरी बोली बोल रहा। 

पूजा प्रेम सहित करता,
भक्ति पुष्प अर्पित करता,
मेरे इष्ट देव गुरुजन को 
निष्ठा से भूषित करता।

क्या अनर्थ माहौल रहा,
वो और मैं सम तोल रहा?
वही शत्रु है क्योंकि वह न 
मेरी बोली बोल रहा।  

विग्रह को खण्डित करता,
भक्ति भाव व्यथित करता,
मल से अपने या मूत्र से,
पूजास्थल दूषित करता।

धीरज को टटोल रहा,
श्रद्धा डावाडोल रहा,
वही मित्र मेरा क्योंकि वह
मेरी बोली बोल रहा। 


पाई पाई है कमा रहा,
पूंजी धन को जमा रहा,
बूंद-बूंद सींचे सपनों को,
खून-पसीना बहा रहा।   

इतना लोभी लोल रहा,
लालच का कल्लोल रहा,
वही शत्रु है क्योंकि वह न 
मेरी बोली बोल रहा।  

हुए प्रताडित सब दौड़े,
गांव गली घर सब छोड़े,
देख नाच उन्माद में उनको,
जिसने देवालय तोड़े। 

छूटा सब अनमोल रहा,
हाथों में कशकोल रहा,
वही मित्र मेरा क्योंकि वह
मेरी बोली बोल रहा। 

कर डालूंगा आज दमन,
उस दुर्जन का वंश पतन,
निज भाषी जो नहीं वो पापी, 
होगा उसका आज हनन। 

उड़ता आज मखौल रहा,
क्या उसका अब मोल रहा,
ख़त्म हुआ द्रोही जो था न 
मेरी बोली बोल रहा।  

रक्तरञ्जित आज पड़ा,
मिट्टी में अब हुआ गढ़ा,
शिशु बान्धव परिजन अब सारे,
उसी मित्र को बलि चढ़ा।
 
भू सम्बन्ध अमोल रहा,  
इसी मृदा में घोल रहा,
अब क्या पड़ता फ़र्क मुझे वो 
मेरी बोली बोल रहा।