बोध था ना नाश का सामान लेकर आ गये,
भेस साधु में वही शैतान लेकर आ गये।
आग जिस से था बचाना वृक्ष को अस्तित्व का,
उस अनल को कुम्भ घृत का दान देकर आ गये।
मथ समन्दर को चले पाने अमरता का घड़ा,
भेस साधु में वही शैतान लेकर आ गये।
आग जिस से था बचाना वृक्ष को अस्तित्व का,
उस अनल को कुम्भ घृत का दान देकर आ गये।
मथ समन्दर को चले पाने अमरता का घड़ा,
घोर कायरता भरा विष पान लेकर आ गये।
यज्ञ करते धर्म रक्षा का सदा संकल्प ले,
वेदि पर सह स्वप्न के हम प्राण देकर आ गये।
विस्मरित इतिहास का गौरव उजागर आस में,
सन्तति के भविष्य का बलिदान देकर आ गये।
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