इस शहर को क्या हो गया है?
हर तरफ बस एक धुंआ सा है दीखता।
ये कैसी निराशा, ये कैसा अँधेरा?
ये कैसे दुःखों की घटाओं ने घेरा?
सुनो हर एक कण को, जो है चीखता।
इस शहर को क्या हो गया है?
हर तरफ बस एक धुंआ सा है दीखता।
कभी ये भी फूल और गुल से सजा था,
बाग-ओ-बगीचों की हंसी से भरा था,
पत्ता भी खांसे कहीं कोई छींकता।
इस शहर को क्या हो गया है?
हर तरफ बस एक धुंआ सा है दीखता।
खिले धूप सर्दी में हमने सुना था,
नीला वो आकाश हमने सुना था,
अचरज है ऐसा भी वक़्त कोई ठीक था।
इस शहर को क्या हो गया है?
हर तरफ बस एक धुंआ सा है दीखता।
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