है हँसी बिखराती
ख़ुशी बरसाती
दुःख के अन्धकार में रौशनी फैलाती
रूप सुनहरा
पर मैं देख ठहरा
उसकी आँखों का सागर गहरा
कोई बात छुपाता
मैं जान पाता
गर मैं बस इतना समझ पाता
कि है वो क्या
जो दर्द भरा
उसके दिल की किताब में लिखा
पर मैं बेअकल
पड़ा निर्बल
हर कोशिश के बाद भी विफल
खड़ा हूँ आज
सुन ले आवाज़
अब तू ही खोल दे सारे राज़
ऐ मेरे खुदा
अब तू ही बता
कि आखिर मेरी आकांक्षा है क्या?
The poems and verses that I have written over time. I do hope you enjoy them.
Wednesday, December 31, 2008
आकांक्षा
Wednesday, December 10, 2008
विश्वास - part 1
एक बार एक बेटी बोली
जाकर अपनी माता से
समझ न आये तुमसे पूछूँ
या पूछूँ विधाता से
पति स्वरूप में तुमने माता
ये कैसा उपहार दिया
जिसने जीवन का रस कोई
न ही सुख न प्यार दिया
नहीं कभी पूरी कर पाया
मेरी कोई आशा को
और न पाया समझ कभी वो
शादी की परिभाषा को
नहीं वो क्यों माँ ऐसे जैसे
प्रेमी मेरी सखियों के
यही सोच फिर गिर जाते हैं
आँसू मेरी अँखियों से
... to be continued
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