एक बार एक बेटी बोली
जाकर अपनी माता से
समझ न आये तुमसे पूछूँ
या पूछूँ विधाता से
पति स्वरूप में तुमने माता
ये कैसा उपहार दिया
जिसने जीवन का रस कोई
न ही सुख न प्यार दिया
नहीं कभी पूरी कर पाया
मेरी कोई आशा को
और न पाया समझ कभी वो
शादी की परिभाषा को
नहीं वो क्यों माँ ऐसे जैसे
प्रेमी मेरी सखियों के
यही सोच फिर गिर जाते हैं
आँसू मेरी अँखियों से
... to be continued
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