Wednesday, October 30, 2024

वानर राज

 

प्राचीन किसी काल की,
किसी बीते साल की,
एक कथा पुरानी है,
जो सबको सुनानी है।
 
एक घने जंगल में,
समय बिताते कौतूहल में,
प्राणियों पर संकट आया,
अकाल का समय विकट आया।
 
सूखे सारे नदी ताल,
सूखे सारे वृक्ष विशाल,
तृण घास भी हुई विरल,
पड़े जन्तु सारे शिथिल।
 
व्याकुलता में सब पड़े,
घोर चिन्तन में खड़े,
कैसे बचें इस दुविधा से,
मुक्ति पाएं इस क्षुधा से।
 
तभी बन्दर एक चिल्लाया,
सर्वसम्बोधन कर बतलाया,
तुम्हारे दुःखों का जो कारण है,
उसका एक ही निवारण है।
 
उठा फेंको उसको सिंहासन से,
पीड़ित हो जिसके शासन से,
असमर्थ अक्षम है वो,
आलस में क्या कम है वो।
 
बैठा बैठा गुर्राता है,
मुफ़्त की रोटी खाता है,
मूढ़ है वह न विचलित है,
अपना मरना तो निश्चित है।
 
है समय यही आन्दोलन का,
आधारभूत परिवर्तन का,
एक नए राजन का करो चयन,
जनसेवा में जिसकी लगन।
 
जो स्फूर्ति से हो भरा,
विचरता वृक्ष हो या धरा,
जो लंबी दूरी हो लांघता,
मैं बस इतना ही माँगता।
 
मेरी बात से यदि हो सहमत,
दे दो मुझको अपना मत,
अपनी क़िस्मत चमकाओगे,
दिन रात पेट भर खाओगे।
 
प्रत्येक प्रजाति पाए आहार 
उनकी संख्या के अनुसार 
भोजन रहे पर्याप्त सदा,
मिट जाएगी यह आपदा।  

दुःखों का मैं करूँगा नाश,
इतना दिलाता हूं विश्वास,
सबको मैं न्याय दिलाऊंगा,
अच्छे दिन वापस लाऊंगा।

आक्रोश से भर गई सभा,
दुःख के बोझ में जो था दबा,
उसको उम्मीद की एक किरण,
था मर्कट का वह भाषण।
 
हाँ। यही सही होता प्रतीत,
कब तक करें ऐसे व्यतीत,
जीवन ये दुखदायी इतना,
कष्ट भरा हैं इसमें कितना।
 
बन्दर ये कहता सत्य है,
इसकी बातों में तथ्य है,
इस सिंह से अब कुछ नहीं होगा,
इसने है सुख सिर्फ़ भोगा।
 
हम इसको सबक सिखायेंगे,
ऐसी धूल चटायेंगे,
इतना अद्भुत होगा पतन,
वर्षों वर्षों होगा स्मरण।
 
और फिर हुआ तख़्ता पलट,
बन्दर राजा बना झटपट,
अब दुःख मेघ छँट जायेंगे,
दिन सन्तोष में कट जाएँगे।
 
और ऐसे ही दिन कुछ बीत गए,
प्राणी सारे भयभीत हुए,
बन्दर की कोई खबर नहीं,
दुर्दशा वही, कोई अन्तर नहीं,
कुछ नहीं हुआ कोई सुधार,
भीषण अकाल की पड़ती मार।
 
बन्दर कुछ तो करता होगा,
यह दृश्य उसको भी अखरता होगा,
उसने था दिया आश्वासन,
इसलिए चुना था उसको राजन।
 
चलो उससे हम आयें मिल,
वो भी जाने अपनी मुश्किल,
ऐसा कह सब मिलकर चले,
उस कपि राजा के घर चले।
 
वट का तरु था एक महान,
सम्मुख उसके विराजमान,
इक खाट पर पड़ा सुप्त था,
स्वप्नलोक में लुप्त था।
 
बन्दर को देख अचरज हुआ,
प्रजा को क्रोध सहज हुआ,
बातें करी थी लम्बी चौड़ी,
करोगे तुम भागा दौड़ी,
रह चुस्त सदा होगे तत्पर,
अब सोते पड़े हो खाट पर।
 
यह सुन वानर अब हुआ खड़ा,
और तुरन्त वटवृक्ष पर चढ़ा,
दो पल पश्चात् नीचे उतर,
चढ़ बैठा फिर से वह तरु पर।
 
ऐसा ही वक़्त गुज़रता रहा,
चढ़ता वह फिर उतरता रहा,
रुकने का लिया नहीं नाम,
ऐसे ही सुबह हो गई शाम।
 
एक हिरण का धीरज टूटा,
सब्र क्रोध बन कर फूटा,
राजा यह आप क्या कर रहे,
बस पेड़ पर चढ़ उतर रहे।
 
चढ़ते चढ़ते मर्कट थमा,
टहनी पर वह आ कर जमा,
आँखों को फाड़ कर गुर्राया,
खीजते हुए वह चिल्लाया।
 
कैसे कृतघ्न प्राणी हो तुम,
निर्लज्ज विद्रोह वाणी हो तुम,
अच्छे बुरे की पहचान नहीं,
नृप का करते सम्मान नहीं।
 
अविश्वास से करते सवाल,
तुमको न दिखता मेरा हाल,
क्या तुम्हें सिंह ने भड़काया,
उसने क्या तुम्हें यहाँ भिजवाया।
 
करते हो वाद वितण्ड तुम,
क्या चाहते मृत्युदण्ड तुम,
यदि होता न अब वानर का राज,
भक्ष हो जाते तुम आज।
 
लोक कल्याण में सदा तत्पर,
सुबह से शाम तक निरन्तर,
लगातार काम मैं कर रहा हूं,
देखो, मैं इस पेड़ पर चढ़ कर उतर रहा हूँ।
 

Saturday, October 12, 2024

घायल सभ्यता

होती यत्र सुगन्ध सभ्यता के पुष्पों के उपवन की, 

आज गूंजती उन पुष्पों की रुदन हृदय में कण कण की।

Tuesday, August 27, 2024

अच्छे दिन


बोध था ना नाश का सामान लेकर आ गये,
भेस साधु में वही शैतान लेकर आ गये।

आग जिस से था बचाना वृक्ष को अस्तित्व का,
उस अनल को कुम्भ घृत का दान देकर आ गये।

मथ समन्दर को चले पाने अमरता का घड़ा, 
घोर कायरता भरा विष पान लेकर आ गये।

यज्ञ करते धर्म रक्षा का सदा संकल्प ले,
वेदि पर सह स्वप्न के हम प्राण देकर आ गये।

विस्मरित इतिहास का गौरव उजागर आस में,
सन्तति के भविष्य का बलिदान देकर आ गये। 

Monday, January 22, 2024

राम का राज्य

 भारत भू पर पुनः राम का पुण्य काल आरम्भ हुआ। 


असुर असत का भवन गिरा, 
हुई पुनर्जीवित धरा,  
भक्ति शक्ति बल साहस से अब ध्वस्त दुष्ट का दम्भ हुआ। 
भारत भू पर पुनः राम का पुण्य काल आरम्भ हुआ। 

हुए प्रफुल्लित सब जन मन,
आनन्दित होता कण कण,
शोक सभ्यता को आशा विश्वास नाम आलंब हुआ।
भारत भू पर पुनः राम का पुण्य काल आरम्भ हुआ। 

सदियों (तक) सहता रहा दमन,
दुःख सहा भयंकारी भीषण, 
बूँद-बूंद अश्रु का उनके विजय ध्वजा का स्तम्भ हुआ। 
भारत भू पर पुनः राम का पुण्य काल आरम्भ हुआ।