Sunday, September 28, 2008

तपस्या

जैसे धरती पर बाग़ तभी खिलता है
जब उसके सीने पर एक हल चलता है |
जिस तरह सोना बस वही निखरता है
अग्निपथ पर जो चलकर पिघलता है |

जैसे लोहा वही खड्ग बन पाता है
जो हथौडे की चोट पर पिटता है |
हीरे का चेहरा भी तभी चमकता है
जब एक चाकू की नोक पर कटता है |

जिस तरह अनाज वही रोटी बनता है
जो चक्की की भुजाओं में पिसता है |
वैसे ही मानव वही पाता सफलता है
जो कठिनाइयों की राह पर चलता है |