Wednesday, December 31, 2008

आकांक्षा

है हँसी बिखराती
ख़ुशी बरसाती
दुःख के अन्धकार में रौशनी फैलाती
रूप सुनहरा
पर मैं देख ठहरा
उसकी आँखों का सागर गहरा
कोई बात छुपाता
मैं जान पाता
गर मैं बस इतना समझ पाता
कि है वो क्या
जो दर्द भरा
उसके दिल की किताब में लिखा
पर मैं बेअकल
पड़ा निर्बल
हर कोशिश के बाद भी विफल
खड़ा हूँ आज
सुन ले आवाज़
अब तू ही खोल दे सारे राज़
ऐ मेरे खुदा
अब तू ही बता
कि आखिर मेरी आकांक्षा है क्या?

Wednesday, December 10, 2008

विश्वास - part 1

एक बार एक बेटी बोली
जाकर अपनी माता से
समझ न आये तुमसे पूछूँ
या पूछूँ विधाता से

पति स्वरूप में तुमने माता
ये कैसा उपहार दिया
जिसने जीवन का रस कोई
न ही सुख न प्यार दिया

नहीं कभी पूरी कर पाया
मेरी कोई आशा को
और न पाया समझ कभी वो
शादी की परिभाषा को

नहीं वो क्यों माँ ऐसे जैसे
प्रेमी मेरी सखियों के
यही सोच फिर गिर जाते हैं
आँसू मेरी अँखियों से

... to be continued