Thursday, June 24, 2010

ख़ुशी का ग़म

होठों में मुस्कराहट है
आँखों में घुली शरारत है
फिरता दुनिया के मेले में
अपनी तो ऐसी आदत है

रस्ते में हमसफ़र मिले
हँसते हँसते हम संग चले
फैलाते बरसाते सदा
खुशियाँ जितनी हमको मिले

लेकिन जो कोई झांकता
दिल की गहराई मापता
टूटा फूटा सा कोने में
टुकड़ा मिलता एक ख्वाब का

चुभता दिल की दीवारों पर
कर देता घाव दरारों पर
जलता भुनता है दिल मेरा
रखा जैसे अंगारों पर

उम्मीद यही कि हट जाए
ये दर्द कभी तो घट जाए
हर चाह तेरी हर ख्वाब तेरा
दिल से मेरे अब मिट  जाए

ऐसे ही अब जी लेता हूँ
खुशियों से दिल भर लेता हूँ
और परदे में इन खुशियों के
अपने आंसूं पी लेता हूँ