Saturday, September 16, 2023

सनातन

 मिट सकता है नहीं सनातन कभी किसी के कहने से।


आदि काल से जीवित जो, चिरञ्जीव है शाश्वत जो,

युगों युगों से करता आया मोक्ष मार्ग प्रकाशित जो। 

कभी थका है दीप भला वो ज्ञान ज्योति का जलने से।

मिट सकता है नहीं सनातन कभी किसी के कहने से।


जिसपर अत्याचार हुआ, झूठ-कपट का वार हुआ,

तत्त्वों का तथ्यों का कण कण रक्त-सिन्धु का धार हुआ।

रोक सका है क्या कोई आदित्य सत्य का उगने से।

मिट सकता है नहीं सनातन कभी किसी के कहने से।


जब भी पापी गुर्राया, खड्ग पवन में लहराया,

कट कर उसका शीर्ष गिरा है अहंकार जिस पर छाया।

कभी झुका है शूर भला ही युद्ध धर्म का लड़ने से। 

मिट सकता है नहीं सनातन कभी किसी के कहने से।


मथुरा और अवध टूटा, सोमनाथ को भी लूटा,

बन्द कुएं में छिपा हुआ नन्दी का विश्वनाथ छूटा।

रोक सका है क्या कोई देवाल भक्ति का बनने से।

मिट सकता है नहीं सनातन कभी किसी के कहने से।

Saturday, August 27, 2022

जिन्दगी

 पढ़ते भी रहे हम लिखते भी रहे,

हंसे तो कभी सिसकते भी रहे,

कभी लगाते मोल बने खरीददार,

कभी बाज़ार में बिकते भी रहें।


कभी देखा वादी–पहाड़ों को,

देखा सुलगती गर्मी और जाड़ों को,

कभी ठहर के देखा समन्दर की तरह,

कभी चञ्चल नदी से बहते रहें।


कभी बांधा शब्दों को रागों में,

कभी खिलाया फूलों को बागों में,

सङ्गीत साज़ों में सजाते कहीं,

तो कभी गीतों पर हम थिरकते रहें।


कोई कह गया..

कि जो यूं ज़िन्दगी बिताओगे,

ज़िन्दगी क्या है जान पाओगे,

कि जीवन का मतलब हमें,

आ जायेगा समझ सब हमें।

पर कुछ कमी शायद हम में ही थी,

कि हम जितने बने उतने बिखरते रहें।

Sunday, March 20, 2022

एक दोपहर

एक सुस्त दोपहर
लेटे थे हम बिस्तर पर
करने को थोड़ा आराम
कि तभी अचानक से, श्रीमान,
फ़ोन हमारा चीखा चिल्लाया,
किसी का बुलावा था आया।
बन्द पलकों के साथ ही हमने हाथ बढ़ाया,
फ़ोन को उठाकर कानों से लगाया,
और बेज़ार सी आवाज़ में फ़रमाया,
"हैलो।"


एक पल का था सन्नाटा,
और इसके पहले की हमारा मुँह खुल पाता,
एक मीठी वाणी का उस ओर उद्गम हुआ
जैसे अमृत और मधु का सङ्गम हुआ,
अवश्य ही वह कोई अप्सरा थी जिसका पृथ्वी पर जनम हुआ।
वैसे तो हम खुश ही हैं ,
लेकिन उस पल अपने विवाहित होने का हमें थोड़ा सा ज़रूर ग़म हुआ। 


खैर सपनों की दुनिया से खुद को निकाला,
अपनी बची-खुची जवानी को सम्भाला,
अपनी भावनाओं को कर के कण्ट्रोल,
अपनी उम्र के तराज़ू में शब्दों को तोल,
जैसे-तैसे हिम्मत जुटाए,
उन मोहतरमा से हम फ़रमाये,
"कहिये, मैं क्या मदद कर सकता हूं आपकी?" 


"जी मैंने सुना है कि आप पीएचडी के छात्र है,
और वाकई प्रशंसा के पात्र हैं,
पर हमने भी पीएचडी के देखें हैं ख़्वाब,
यह निर्णय सही है या ख़राब,
ऐसे ही कुछ प्रश्नों के पाने थे जवाब,
इसीलिए आपको कॉल किया है जनाब।"


बस उसी क्षण हुई स्वप्न-नगरी ध्वस्त,
हौसले हुए पस्त,
आँखों के आगे दुःख के बादल मण्डराये,
और हम असलियत में वापस लौट आये।
बोले, "बहन... अब आपको क्या बताएं,
अपनी कहानी कहां से सुनाएं"


आईआईएम का कैम्पस स्वस्थ्य का बाज़ार है,
यहां आते ही व्यक्ति हो जाता वेट-लॉस का शिकार है,
जो खा लेता इसकी मेस में एक बार है,
उसे हो जाता फिटनेस से प्यार है। 


सच कहें तो आईआईएम ने हमें इतना प्यार सिखा दिया,
संवेदना क्या होती है यह भी दिखा दिया,
बेदिल हैं वो लोग जो कुत्तों को कैम्पस से हटवाते हैं,
भई, कुत्तों का मन रखने को महीने में एक-दो बार तो हम भी खुद को उनसे कटवाते हैं। 


मैंने कहा, "देवी जी।"
आईआईएम के पानी में इतनी प्यूरिटी है,
कि अच्छे-अच्छों को मिल जाती मैच्युरिटी है। 
हम  जब यहां आये थे अपना सामान लेके,
सर पे बालों की पूरी दूकान लेके,
पूरी पर्सनालिटी में ऐसे फेरबदल हो गए,
कि तीन साल में भैया से अङ्कल हो गए। 


मैडम जी, आईआईएम आस्था से ओत-प्रोत है,
भक्ति-भाव का अद्वितीय स्रोत है। 
ऐसे माहौल में पढ़ते हुए, 
वन-प्राणी वातावरण या स्वयं भगवान से लड़ते हुए,
जब आप कभी थक जाएँ,
पढ़-पढ़ के पक जाएं,
फिर भी न मिलेगा आराम है,
क्या कहें इतना सारा काम है,
कि नास्तिक को भी ईश्वर समरण आ जाते हैं,
प्रार्थना में स्वयं को हर क्षण पाते हैं। 


तो अब आप ही कहें, माय डिअर,
आपको सारे सङ्केत तो दिख रहे होंगे क्लियर। 
जब ऐसा हो निराला संस्थान,
तो कोई कितना करे उसकी महानता का बखान। 
स्वास्थय व प्रेम का वास्ता,
मैच्युरिटी और भगवान में आस्था,
यह आईआईएम इन सब का परम उदाहरण है,
मेरे यहां आने का, डार्लिंग, बस यही कारण है। 


फिर फ़ोन पर एक ख़ामोशी छायी,
कुछ समय के लिए कोई आवाज़ नहीं आयी,
फिर इसके पहले कि हम कुछ कह पाते,
कन्या से उसका नाम पता ही जान पाते,
उसने फ़ोन पटक दिया,
हमारे दोस्ती में बढ़ते हाथ को झटक दिया। 
खैर, हमने अपनी नज़र घुमाई,
अभी भी थी भरी दुपहरी छायी,
और लेटे-लेटे उसी बिस्तर पर,
फिर सो गए अपनी पलकें बन्द कर। 

Thursday, August 15, 2013

Remember this day

Remember this day
For our glorious history
For our torturous past
For the promise of future
For our legacy vast

Remember this day
For our rivers mighty
For our mountains immense
For our bountiful soil
For our forests dense

Remember this day
For our vibrant culture
For our religions unique
For our philosophy
For our spiritual mystique

Remember this day
For our mathematics
For inventions and discoveries
For our technology
For our great universities

Remember this day
For our languages aplenty
For our literature divine
For our music and dances
For our cuisines fine

Remember this day
For the lives that were lost
For the sacrifices made
to protect what we cherish
For the prices we paid

Remember this day
For like this it was not
Remember this day
For the battles we fought

Remember this day
Not because India was born today;
She has lived a long life.
For we won what was rightfully ours
after centuries of struggle and strife

Remember this day
Not for mere independence,
but for our legacy and duty
For the responsibilities we shoulder
For our love for our country

Jai Hind!

Tuesday, July 23, 2013

जन्म दिन

नये बरस की नयी सुबह
खुशियाँ ले कर आयी हैं 
उम्मीदें खुशहालीयों की 
हर पल में समाई हैं 

मखमलों की कोमलता से 
उसने मुझे जगाया था 
बेटी ने अपने हाथों से
गालों को सहलाया था 

शहद घुल गया कानों में 
उसके मुख से जब छूटा 
तुतलाता एक Happy Budday
प्यारा सा टूटा फूटा 

शर्माती आँखों के पीछे 
प्यार कहीं छुपायी थी 
पत्नी जी ने जब मुस्काते
दी हमको बधाई थी 

सच पूछें तो चाहत उनकी 
जैसे किशन की  राधा थी 
मेरे जनम दिवस की खुशियाँ
उनको मुझसे ज़्यादा थी 

माँ पिताजी भाई बहना 
सबका मुझको प्यार मिला 
मित्रों और सहेलियों का
स्नेह भी अपार मिला 

सच कहा था संतो ने जो 
अब हमने भी सीखा है 
ऐसी संपत्ति के आगे 
सोना चांदी फीका है 

Monday, April 22, 2013

सत्यमेव जयते (Satyamev Jayate)


न कपट न चाल से 
खड्ग से न ढाल से 
भेद छल  धूर्तता से
द्वन्द  होगी तथ्य की 

झूठ का विनाश होगा 
जीत होगी सत्य की 


दुष्टता अपार है
सभ्यता बीमार है  
न रहेगी ख़ाक भी 
दानवों न दैत्य की 

झूठ का विनाश होगा 
जीत होगी सत्य की 


संकल्प ये अटल रहे 
बाहुओं में बल रहे 
सत्य के आधार पे ही 
सृष्टि हो भविष्य की 

झूठ का विनाश होगा 
जीत होगी सत्य की 

Monday, August 15, 2011

Bharat Mata


उठो नींद से तुम नज़र तो घुमाओ
बुलाती हैं चिल्ला के कोई बचाओ

लुटी जा रही जिसकी इज्ज़त बेचारी
गुनाहों की तलवार पड़ी जिसपे भारी

ना बेटा ना बेटी न ही कोई आया
वो सोता रहा जिस किसी को बुलाया

ना देखी किसी ने नुमाइश कली की
जो नाज़-ओ-मोहब्बत से अब तक पली थी

ये बिखरते से सपने बिलखती सी आँहें
ये आँखें सिसकती सिमटती सी बाहें

जो कहती हैं अब ना नज़र मूँद देखो
छुपा प्यार दिल में कहीं ढूंढ देखो

ना जलने दो शैतान की आग में तुम
ना हो जाऊं इतिहास में मैं कहीं गुम

मैं धरती हूँ जिसपे तुम चलना थे सीखे
मैं बारिश हूँ जिसमें कई बार भीगे

मैं गोदी हूँ जिसमें तुम सर रख के सोये
मैं आँचल हूँ जिसमें तुम छुप कर थे रोये

वही माँ हूँ मैं जिसने तुमको संभाला
मोहब्बत और बलिदान से तुमको पाला

ये विनती है तुमसे ना मुंह फेर जाओ
बुलाती हूँ तुमको के मुझको बचाओ

Wednesday, July 28, 2010

Moment

Drenched from head to toe,
beads of sweat begin to show,
the heart beats faster with every breath
exhorting the limbs to fight the flow.

The sky bright and the shining sun,
clouds embellished at the horizon,
the chirping birds, the dancing trees
by a watery gloom were overrun.

The feet moved at a frenetic pace,
the arms extended wanting to raise,
the eyes open wide to catch glimpses of life
as the colour runs off the face.

And as the breath turns into a gasp,
the fists close tight in a bid to grasp,
the thread breaks and the ties are snapped,
from the lap of Life into Death's clasp.

Sunday, July 04, 2010

The Big Bang

One fine day I was told
that the universe is finitely old.
That it was born in a flash,
spawned large clouds of dust and ash.

It was called the Big Bang
and it made a lot of noise.
For some strange reason, I was told,
a matter for everyone to rejoice.

Science called it a triumph
of human mind and intelligence.
The Church pointed to the Bible -
Genesis was divine interference.

I was however perplexed
‘coz there were doubts abound.
If everything emerged post the Bang,
then what before was there to be found?

Indeed if there was something before
from which came everything,
then who put it there, tell me,
or how did it come to being?

Was it a divine creation,
or matter that already existed -
joined together in a tight embrace,
forces of separation that resisted?

If nothing preceded the Bang,
then wherefrom did God appear?
What put Him there in the wilderness,
gave Him our responsibility to bear?

If everything existed as it is
and only modified its state,
then why, pray tell me, must we
this grand catastrophe celebrate?

And so the doubts remain -
agnostic and critical.
Ridiculed by science
and sentenced to burn in hell.

Thursday, July 01, 2010

A mirage or an illusion,
or just my imagination
of a light so distant
that exists for a moment
and quietly fades away.
Sometimes I feel I may
grab it, hold it, or clutch it,
extend my arm and touch it
to feel it's warmth soothing
and the joy it'd bring.
As hard as I try to reach,
"come to me", I beseech,
it mocks me and teases,
does what itself pleases
seeding a doubt within.
My optimism runs thin
and I wonder should I
push myself to try
to catch it and make it mine
it's glow and enchanting shine.
The light fades into dark
to reincarnate as a spark.
A world so surreal
a dream so real.

Thursday, June 24, 2010

ख़ुशी का ग़म

होठों में मुस्कराहट है
आँखों में घुली शरारत है
फिरता दुनिया के मेले में
अपनी तो ऐसी आदत है

रस्ते में हमसफ़र मिले
हँसते हँसते हम संग चले
फैलाते बरसाते सदा
खुशियाँ जितनी हमको मिले

लेकिन जो कोई झांकता
दिल की गहराई मापता
टूटा फूटा सा कोने में
टुकड़ा मिलता एक ख्वाब का

चुभता दिल की दीवारों पर
कर देता घाव दरारों पर
जलता भुनता है दिल मेरा
रखा जैसे अंगारों पर

उम्मीद यही कि हट जाए
ये दर्द कभी तो घट जाए
हर चाह तेरी हर ख्वाब तेरा
दिल से मेरे अब मिट  जाए

ऐसे ही अब जी लेता हूँ
खुशियों से दिल भर लेता हूँ
और परदे में इन खुशियों के
अपने आंसूं पी लेता हूँ

Wednesday, April 14, 2010

Rules are for fools

Drive on the left, they said,
and let others move ahead.
Be patient at the red light,
respect the pedestrians’ right.

Someone tell them please
to keep their own peace.
Why should I suffer the traffic
when I can break rules at ease?

And if that’s not enough
they say more crazy stuff.
Throw garbage in the pit,
don’t stain the walls with spit,
don’t ever litter on the road,
keep it always clean, I am told.

Why would I even look around
when there is plenty of ground
to throw my stuff on or litter.
And who cares I’m called a spitter!

Stand in the queue, they dictate,
stay patient until your turn and wait.
It will lead to chaos if one strayed
from the procedure well laid.

But what is a little inconvenience
if I get my work done at once.
The chaos, if any, is a small cost.
Either I win or everything is lost.

So, the moral of the story
in all its simple glory
is to forget what’s taught in schools,
break the rules at will
‘coz, my dear, rules are for fools.

Sunday, February 14, 2010

तमन्ना

सुहानी शाम के आँचल में
एक खूबसूरत से पल में
झुकी पलकों के परदों से स्वीकार कर ले
पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले


साँसों की महकती गर्मी से
होठों की सुलगती नरमी से
दिल के उजड़े उपवन में बहार कर ले
पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले


मीठी मीठी बातों में
लिए हाथ को हाथों में
शहद में घुली हंसी से इज़हार कर ले
पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले


जहां उसके नाम करूं
ज़िन्दगी तमाम करूं
मुझसे गर ज़िन्दगी में एक बार कर ले
पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले... ...झूठा ही सही

Monday, November 30, 2009

मैं जानूं ना

कैसे घटायें कोई बताये वज़न जो बढ़ता जाए
खाते नहीं हम शक्कर मिठाई फिर भी फरक न पाएं
मैं जानूं ना ...आ..आ..आ..
मैं जानूं ना

ह्म्म्म....मिलता जो फिर ना झड़े हमसे न जाने क्यूँ
बरसों तक ऐसे जुड़े हमसे न जाने क्यूँ
मोटापा ऐसा मिला हमसे न जाने क्यूँ
सदियों तक न बिछड़े हमसे न जाने क्यूँ...ऊँ ..ऊँ...ऊँ... ऊँ...


कैसे घटायें कोई बताये वज़न जो बढ़ता जाए
खाते नहीं हम शक्कर मिठाई फिर भी फरक न पाएं
मैं जानूं ना ...आ..आ..आ..
मैं जानूं ना


आ..आ..आ..
गोलाई में देखो
मेरे जो जम गया..आ
निकलता नहीं है
क्या करूं..
ओ.. ओ.. ओ..
जाने क्यूँ ना जाए
क्यूँ सताए बेवजह
मैं दिन भर भी
कसरत जो करूँ
डायटिंग कर के भी
फास्टिंग कर के भी
डम्बबेल वो भारी से
लिफ्टिंग कर के भी
न पिघले
हमसे न जाने क्यूँ

सदियों तक न बिछड़े हमसे न जाने क्यूँ...ऊँ ..ऊँ...ऊँ... ऊँ...


कैसे घटायें कोई बताये वज़न जो बढ़ता जाए
खाते नहीं हम शक्कर मिठाई फिर भी फरक न पाएं
मैं जानूं ना ...आ..आ..आ..
मैं जानूं ना


Wednesday, November 11, 2009

Confessions of an eligible bachelor


Let me be alone, let me be free.

Please don’t try to push me.

I am happy as I am without a worry.

I don’t understand what’s the hurry

to find a girl and marry now;

start a new life with her in tow.

I will do it when I want to.

It will happen without much ado.

But for now leave me in peace.

I only request you, please

to let me find one on my own,

to reap the fruits of what I’ve sown.

If I fail I will learn.

To you for help I will turn.

Or, maybe it is meant to be,

ordained by destiny,

that there be none for me;

no joy of matrimony.

But who am I to protest

what God for me thinks best.

I will gladly go by his rule –

Be it praises or ridicule.

But spare me the process

that causes me much distress.

I don’t want to be rejected;

feel unwanted and dejected.

I don’t want to reject anyone;

cause grief and lamentation.

So forgive me, dear Sir and Ma’am,

because this is not who I am.

Have mercy on this poor feller

for a few months, or perhaps a year,

let me be just me - an eligible bachelor.

Monday, June 15, 2009

office की कुर्सी

सरक भी जाए जो ज़मीन
हिल जाए दुनिया सही
अपने दिल के अन्दर ही
डर अपना समेटे रहो
चाहे कुछ भी हो लेकिन
तुम कुर्सी पर बैठे रहो


घर जल्दी क्यों जाओगे
क्या घर संसार निभाओगे
परिवार का ग़म मत करना
आनंद यही पर लेते रहो
चाहे कुछ भी हो लेकिन
तुम कुर्सी पर बैठे रहो


जीना यही व मरना है
तुम्हें काम ही करना है
जीवन के भवसागर में
नाव करम की खेते रहो
चाहे कुछ भी हो लेकिन
तुम कुर्सी पर बैठे रहो


नौकरी का यही सिद्धांत है
तेरे भाग में एकांत है
इसी में अपना मोक्ष जान के
चिता समझ तुम लेटे रहो
चाहे कुछ भी हो लेकिन
तुम कुर्सी पर बैठे रहो

Wednesday, June 10, 2009

Resilience

you may defeat me
but only just
you might beat me
but only just

it may be setback
but only just
confidence may crack
but only just

i will be afraid
but only just
courage may fade
but only just

'coz i'll resist
and retaliate
to give up easily
is what I hate

So you beware
it's only a matter of time
before you realize
the victory will be mine

Wednesday, June 03, 2009

Devotion

When you look for agreement,
I nod my head.
when you seem to disagree,
I discard whatever I said.

When you say I am right,
I joyously thump my chest,
but if you ever ask me,
I’d say you are the best.

I love your every idea,
and promise to live it.
When you ask for my services,
I am always ready to give it.

You are my almighty,
I forever take your name,
I know to survive in this world,
I have to play this game.

‘Coz you are my giver,
my provider of food,
but if I ever could,
I would leave you for good.

But you are my boss,
and I have to adore you.
Though I may never reveal it,
I truly abhor you.

Tuesday, May 19, 2009

Rat-race

As I joined the rat-race
running at a frantic pace
trampling the hapless few
Win was all I wanted to

until I one day found
trampled to the same ground
trapped under crushing weight
of one running to a similar fate

Epitaph

Some days were stormy,
some days were benign.
Some were dark and gloomy,
some full of sunshine.

Soon all that's mine
would vanish without a sign.
But not am I to complain,
'coz all's well that ends up fine.

Wednesday, December 31, 2008

आकांक्षा

है हँसी बिखराती
ख़ुशी बरसाती
दुःख के अन्धकार में रौशनी फैलाती
रूप सुनहरा
पर मैं देख ठहरा
उसकी आँखों का सागर गहरा
कोई बात छुपाता
मैं जान पाता
गर मैं बस इतना समझ पाता
कि है वो क्या
जो दर्द भरा
उसके दिल की किताब में लिखा
पर मैं बेअकल
पड़ा निर्बल
हर कोशिश के बाद भी विफल
खड़ा हूँ आज
सुन ले आवाज़
अब तू ही खोल दे सारे राज़
ऐ मेरे खुदा
अब तू ही बता
कि आखिर मेरी आकांक्षा है क्या?

Wednesday, December 10, 2008

विश्वास - part 1

एक बार एक बेटी बोली
जाकर अपनी माता से
समझ न आये तुमसे पूछूँ
या पूछूँ विधाता से

पति स्वरूप में तुमने माता
ये कैसा उपहार दिया
जिसने जीवन का रस कोई
न ही सुख न प्यार दिया

नहीं कभी पूरी कर पाया
मेरी कोई आशा को
और न पाया समझ कभी वो
शादी की परिभाषा को

नहीं वो क्यों माँ ऐसे जैसे
प्रेमी मेरी सखियों के
यही सोच फिर गिर जाते हैं
आँसू मेरी अँखियों से

... to be continued

Sunday, September 28, 2008

तपस्या

जैसे धरती पर बाग़ तभी खिलता है
जब उसके सीने पर एक हल चलता है |
जिस तरह सोना बस वही निखरता है
अग्निपथ पर जो चलकर पिघलता है |

जैसे लोहा वही खड्ग बन पाता है
जो हथौडे की चोट पर पिटता है |
हीरे का चेहरा भी तभी चमकता है
जब एक चाकू की नोक पर कटता है |

जिस तरह अनाज वही रोटी बनता है
जो चक्की की भुजाओं में पिसता है |
वैसे ही मानव वही पाता सफलता है
जो कठिनाइयों की राह पर चलता है |

Monday, July 21, 2008

Psoriasis

It just comes suddenly
and doesn't seem to go,
the reason for its existence
no one seems to know.

It's dark and it's scaly,
horrifying and ugly,
but it finds itself a spot
and sits there smugly.

And as approaches winter,
the wind gets colder.
it grows bigger in size,
darker, bigger, bolder.


It's conspicuous always
making its presence felt,
Its annoyance persists
howsoever with it's dealt.


Much as one tries to kill,
destroy and obliterate,
it hangs on determinedly
and rapidly proliferates.

There appears no solution,
a problem without cure,
that all possible challenges
it resolutely endures.

Some may call it disease,
some call it a curse,
but one has to live with it
for better or for worse.

Sunday, July 20, 2008

अहंकार

वचन कटु घृणा भरे
शीलता नहीं व्यवहार में
अधीरता के वश में हो
स्वच्छता नहीं विचार में

प्रेम भावना दूर, पड़ा
द्वेष के अन्धकार में
जीवन का निर्माण किया
बस क्रोध के आधार पे

अकेला अपनों से भी दूर
पड़ जाता इस संसार में
मानव जो अपना जीवन
जीता है अहंकार में

Monday, May 12, 2008

संघर्ष

मार-पीट लातें-मुक्का
भरी भीड़ में खाते धक्का
कभी यहाँ सरक कभी वहाँ हिला
मैं स्तब्ध खड़ा हूँ भौचक्का

ईश्वर तेरी क्या माया है
ये आज समझ में आया है
एक छोटे रेल के डब्बे में
सारा संसार समाया है

कुछ भी मुझको सूझ रहा
मैं यही पहेली बूझ रहा
दरवाज़े पे क्यों लटक लटक
मानव मृत्यु से जूझ रहा

कैसी लीला तेरी भगवान्
निःशब्द देखता हूँ हैरान
हर दिन थोड़ा जीने को भी
थोड़ा थोड़ा मरता इंसान

Sunday, April 27, 2008

Little Beggar

As I stood by the road
munching on the snacks
I felt a tug on my arm
by a little child in rags

I determined to ignore it
and decided to look away
but avoid could not the pleading
as its constant gaze upon me lay

In me arose a surge of pity
as I turned to my friend
to elicit a kind word or such
in light of this dreadful trend

He didn’t seem too bothered
or just couldn’t care less
I wondered at his aloofness
with the society in this frightful mess

I rebuked him for his indifference
and he looked at me horrified
taken aback by the expression he cast
I inquired what his reaction implied

“My dear friend, I am sorry to say
that you don’t seem to have an idea
this social mess that you declare
is indeed part of a begging mafia”

“Professional beggars, babies on rent,
locations, commissions and promotion
drugs, exploitation and amputation
just to stir a rich man’s emotion”

“If I were you, I wouldn’t care
even if the child continues to stare
‘coz I would not in hell even
my money with a mafia share”

It was my turn to be horrified
but I could not help but wonder
by driving away one person in real need
would we not be making a blunder?

I turned to the begging child
its beseeching eyes moist and cold
my thoughts seeking to discover
horrid secrets that they might hold

My dialogue with God

This one day I came to a decision
to take up with God His logic and reason
I told myself enough was enough
it was time that He too had it rough


I took it upon me to take up His case
stand up and show Him that His rightful place
was not at the pedestal where He sat with glee
but amongst the dirty chairs where sat we


I rose up and asked Him why
He'd never ever even try
to show us the right from the wrong
and not let us walk towards the devil all along


"why would You let us be stupid and sad?
why would You let us go sinful and bad?
why would You not, like a father, guide?
why would You let us shamelessly submit to our pride?"


"if this is not what You're supposed to do
then I don't see why we should bow our heads to You.
Why should we in deference hold You high
when with Your own rules You do not comply"


He smiled a beautiful smile
and waited for a little while
then He lifted His eyes towards me
who had stood up and challenged His authority


"My child, you are right when you say
that you feel that I did betray.
But you see it is not entirely my doing
your own sins that you are now ruing"


"I did my duty and showed you the light
I did tell you the wrong from the right
but the path that you took you chose on your own
you chose ignorance when to you everything was known"


"You were lured by the devil to follow his signs
I tried to remind you of his evil designs
but you chose to pay me no heed
mesmerized by the golden charm of greed"


"And now you point fingers at me
when the devil has left you to misery.
but you overlook this in your anger and despair
that in the end you find yourself in my care"


I looked around and instantly did realize
I was at His abode under the care of His eyes
I cried out aloud in my naivete as I stood
He took me in His arms and hugged me as only a father would!

Monday, April 21, 2008

मिलन घड़ी

भोर भयी फैला प्रकाश
मैं जगा लिए नयी एक आस
उठ गया आँख मलते मलते
यही सोचता था चलते चलते

आई होगी वो आज तो
दिखला दूंगा ये समाज को
हँसता था मुझपे जो कल तक
देखेगा उसकी एक झलक

कोई करता है मेरा ख़याल
करता है मेरी देख-भाल
शिकवा करता न गिला कोई
ऐसा मुझको भी मिला कोई

क्या आज वो मिलन घड़ी होगी
क्या वो उस पार खड़ी होगी
यूँ सोच विचार करते करते
सहमे सहमे डरते डरते

मैंने ईश्वर का नाम लिया
साँसों को और दिल थाम लिया
और फिर जो दरवाजा खुला…

Tuesday, April 01, 2008

उम्मीद

माना टूटा मेरा दिल है
सूनी दिल कि महफ़िल है
नामुमकिन नहीं ज़िन्दगी लेकिन
भले थोड़ी मुश्किल है


माना नहीं घर-बार है
ठोकरें भी लगातार हैं
नामुमकिन नहीं ठिकाना जब
आशियाना ये संसार है


माना नहीं कोई संग है
न ही जीवन में उमंग है
नामुमकिन नहीं खुशियाँ जब
गुलों में इतने रंग हैं


फिर जब पथरीली राह हो
ग़म में डूबी हर आह हो
मैं चलता रहूँ, बढ़ता रहूँ
क्यों दर्द की मुझे परवाह हो

Tuesday, October 09, 2007

भ्रमर

एक अनजान बगीचे में
पागल भ्रमर भ्रमण करता
मिलन सुन्दर कली का हो
बस यही आस क्षण क्षण करता


यौवन पंख उमंग सहित
उस प्रेमी ने उड़ान भरी
हर अंग अंग खिला फूलों का
खिल खिल कर मुस्कान भरी


आलिंगन पर उन पुष्पों का
न उसके मन को था भाया
प्रेम-वश था विवश भ्रमर के
दिल में इक सुन्दर काया


मदमस्त भ्रमर वो मन मेरा
तरसे है प्रेम कली पावन
रंग भर दे सुन्दरता जिसकी
मोहित कर दे मेरा जीवन

Friday, May 04, 2007

The pain of separation

When the dawn breaks
the sun shines down
the wall of brightness
brings the darkness down


But I feel empty
that something is absent
I wonder why am not happy
in this wonderful moment


It was I who broke away
It was I who dismissed you
Is it strange that now I wonder
Is it strange that I miss you

Saturday, April 21, 2007

Life

As life got busier and busier,
the time cruised by,
and now I try to catch some moments,
some memories flashing by.

undeterred and adamant,
the stream flows on,
how I wish could stop it,
halt it, but it goes on.

and soon would go the moments
that I would have loved to cherish
those flowers fragrant, the rivers tranquil,
those wonderful relations that I relish.

As I stand at the end of the road
looking back, I say to myself,
the end I ran to never did exist,
the end was in the journey itself.

Thursday, March 22, 2007

Marriage

My heart racing fast
sweat on my forehead
My ears were oblivious
to what was being said.

I stood there stupefied
wondering what to do
what state of madness
this situation brought me to.

The nerves were a wreck
I wanted to run far away
I could not bear the burden
of responsibilities coming my way

Then she appeared before me
all demure and shy
A subdued smile on her lips
probably a tear in her eye

Her beauty was enchanting
and my heart skipped a beat
Her lips so full of life
her voice so sweet.

And suddenly the world changed
and I did not want to run away
I wanted to hold her, kiss her
and make love to her all day.

I could not live without her
that I came to know for sure
I could take on the world if she was with me
and suddenly I wasn't afraid any more.

Tuesday, February 27, 2007

Night-out song

नींद आ रही है
मुझे नींद आ रही है
नींद आने से
थक जाने से
उबासी आ रही है

कल भी मैं न सोया
और आज भी सो न पाऊंगा
ऑफिस में रहूँगा
घर वापस जा न पाऊंगा

नाईट आऊट मारूं
काम से हारूं
उदासी छा रही है

नौकरी करते करते
मैं तो सोना ही भूल गया
अब ऐसे दिन बीते
खाना पीना भी भूल गया

दिल बहलाऊं
और समझाऊं
कमाई तो आ रही है

Monday, February 14, 2005

ek choti si prem kahani

liye gilaas haath mein
dekhe nazar bachaaye
ladkee jab koi paas se
hay! matakti jaaye

hay! matakti jaaye
hum dil ko ye samjhaaye
dekh ke mujh ko ek baar
vo muskaati jaaye

vo muskaati jaaye
nazar humse takraayee
dekh ke uska roop rang
dil ne li angdaayi

dil ne li angdaayi
ek josh humpe chaaya
pyaar ki duniyaa mein
humne kadam badhaaya

humne kadam badhaaya
ki jaa ke haath milayen
dil ki baatein bol kar
usko gale lagaayen

bas itna hi tha sochaa
ki apni kismat phooti
dekh ke uska boyfriend
saari himmat chooti

saari himmat chooti
ki uski aisi kaaya
jaise manush shareer mein
ho khud bheem samaaya

socha chalo chhod de
hum nahin naadaan
dil ke badale jaan ko
hum na kare kurbaan

bas yun hi...

abhi subah ka aalam tha ki abhi shaam dhal gayi
jane kab nazar ke saamne se zindagi nikal gayi

kaamyaabi chhoone ki jwala jo dil mein jagayi thi
sholo mein uski apnon ki yaadein jal gayi

sajaye the maine bhi sapno ke kai shandar mahal
khuli palak to khwabo ki duniya pighal gayi

manzile-kaamyaabi ki oar bhaag raha tha 'aks'
ki pairon ke neeche se zameen hi fisal gayi

Iltija

kya khauf hai tumko humse
kis baat se katraate ho
hum dosti ka haath badhate hain
tum haath jhatak kar jate ho

kuch aur nahi hai chaaha humne
fir kyun humse sharmaate ho
na kha jaayenge tumko hum
jo itna tum ghabraate ho.

gar baate ye itni galat hai to
kaan pakad khada ho jaunga
par haske tum do baat kaho
to khushh bada ho jaunga

Manzil...

zindagi ki nayi raah leke hulchul aayi hai
mujhe nazar mere saamne manzil aayi hai

tanhaiyon mein dube the dil ke sab armaan
lehron pe kashti khwabon ki machal aayi hai

bhatak raha tha main kin anjaan rahon par
vo kaun jo sahi raah par le chal aayi hai

nakamiyon ke veeraano ka mujhpe saaya tha
raah mein jeet ki ik shama jal aayi hai

kya kahe 'aks' us khuda ki meherbaani ka
khud uske dar se (meri) kismat badal aayi hai

An English Ghazal

once a lovely day, to write, we sat
from the morning to night, we sat.

that which could lay a sword to rest
with a pen of such might, we sat.

sleepy we feel lying on the couch
on a chair, bolt upright, we sat.

restless by nature that my mind is
holdin' our thoughts tight, we sat.

there ain't a respect for shayars here
Oh 'Aks', this despite, we sat.

:-)

home sweet home

jab shaam ka ghana saaya pada
rah mein liye suitcase khada
ek lift ki taak mein rah to taktey
kabhi aage to kabhi peeche jhaanktey

aankhon mein ek chamak si thi
hoton ki muskurahat bejhijhak si thi
na koi ticket na koi plan bada
suitcase mein jaane kya saamaan pada

bas utha liye jo aaya haath mein
jo dikha use le chala saath mein
ab to ghar jaa ke hi aaraam hoga
teen dino se pehle na koi kaam hoga

ye haath na ruke ye kadam na toote
aisa sunahara mauka na choote
nikal pada bina kuch soche
koi fikr nahi ki koi kya pooche

India-Australia ka koi match tha
dekhne walo ke man mein romanch tha
kintu use chhodne ka bhi koi gham na tha
ab itna sab sochne ka bhi dam na tha

ban gayi suhaani vo shaam thi
kaam ki bediyon se aazaadi ke naam thi
saath mere Ramji ka saath tha
mere sir par unka unka jo haath tha.

I, Me and Myself

Ladies and Gentlemen, listen to me, I am serious,
I am one in a million, a born genius.
A charmer, person of vast intelligence,
a man of strong character, a man of substance.

I am strong, courageous, valiant and brave,
its me, for who all the girls crave.
I am supreme, the greatest and the best,
if you have any doubts, lay them to rest.

Devoid of any sins, I have a pure mind,
I am gentle, generous, polite and kind.
Never short of any manners, a man of civility,
I am modest, not egotist, complete with humility.

I bring joy and happiness, I am a gem of a man,
Bring smile on a sad face, I can.
I know this may have been funny, but hey,
one does not find men like me everyday.

Goodbye

When the clouds blush at the horizon,
When the night is invited by the setting sun,
The body fatigued with the day's workload,
I set off delightfully for my humble abode

Love and life

This is a story,
often left untold,
a story of love,
beautiful and bold.

She loved him,
and he loved her,
often they dreamt
of being together.

Her love was earnest,
from her heart's core,
she was the only one,
he ever did adore.

He was sincere,
and her love was true,
but what lay in other's heart,
neither knew.

Tricky as one may call,
the nature's law,
'coz what would come next,
none foresaw.

He proposed to her,
and she fell in doubt,
the turmoil within,
unshown without.

For she was in a dilemma,
and could not decide,
of whom, among the worthy,
would she be the bride.

Such is the nature's law,
such is her game,
the one she loved and the one who loved her,
were not the same.

Rainfall

In the time of despair,
begins a new day,
with showers of love,
and colourful display.

Parched leaves holding on,
determined and desperate.
revel in the love of life,
care of nature great.

I look on at the marvel,
wonder in my eyes,
with a new vigour and brio,
I move ahead to meet what lies.

It happened one night...

The clanging windows and creaking door,
the rain outside, begins to pour,
and she walks in the darkness of night,
her hair dishevelled and eyes sore.

She doesn't speak, she doesn't cry,
she walks with a purpose in her eye,
a silent burning desire in her heart,
of revenge that her culprit must die.

With every passing moment, she creeps nearer,
the clouds scream in suspense and wonder,
then in the flash of light, he did appear,
And she walked, her steps drawing his death nearer.

Within a blink of an eye, the weapon was out,
the victim could not find a moment to shout,
the swishes, the swashes, the bangs and the splats,
and there in a pool of blood, the body laid out.

Across the silence, she hears one approach,
the weapon cast away instantly for fear of reproach,
"What happened dear, why the noise?"
"Oh nothing! I just killed a cockroach."

Time to leave...

With a smile on her face,
eyes filled with tear,
she has a long look at her son,
so lovely, so dear.

Try as she might
to refuse to believe,
she knows the time it is,
for her dear one to leave.

Why till yesterday was he
just a child under her care,
not a moment of separation,
from her, he could bear.

And now, he is leaving,
leaving her back, all alone.
Wake up, she might, from this dream,
she knew, he'd be gone.

With a hand on her heart,
she makes this sacrifice,
emotions overcome by grief,
watching him leave, the mother cries.

Introduction

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However, you can send in your comments any time. They are always welcome.