Monday, August 15, 2011

Bharat Mata


उठो नींद से तुम नज़र तो घुमाओ
बुलाती हैं चिल्ला के कोई बचाओ

लुटी जा रही जिसकी इज्ज़त बेचारी
गुनाहों की तलवार पड़ी जिसपे भारी

ना बेटा ना बेटी न ही कोई आया
वो सोता रहा जिस किसी को बुलाया

ना देखी किसी ने नुमाइश कली की
जो नाज़-ओ-मोहब्बत से अब तक पली थी

ये बिखरते से सपने बिलखती सी आँहें
ये आँखें सिसकती सिमटती सी बाहें

जो कहती हैं अब ना नज़र मूँद देखो
छुपा प्यार दिल में कहीं ढूंढ देखो

ना जलने दो शैतान की आग में तुम
ना हो जाऊं इतिहास में मैं कहीं गुम

मैं धरती हूँ जिसपे तुम चलना थे सीखे
मैं बारिश हूँ जिसमें कई बार भीगे

मैं गोदी हूँ जिसमें तुम सर रख के सोये
मैं आँचल हूँ जिसमें तुम छुप कर थे रोये

वही माँ हूँ मैं जिसने तुमको संभाला
मोहब्बत और बलिदान से तुमको पाला

ये विनती है तुमसे ना मुंह फेर जाओ
बुलाती हूँ तुमको के मुझको बचाओ

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