Monday, April 21, 2008

मिलन घड़ी

भोर भयी फैला प्रकाश
मैं जगा लिए नयी एक आस
उठ गया आँख मलते मलते
यही सोचता था चलते चलते

आई होगी वो आज तो
दिखला दूंगा ये समाज को
हँसता था मुझपे जो कल तक
देखेगा उसकी एक झलक

कोई करता है मेरा ख़याल
करता है मेरी देख-भाल
शिकवा करता न गिला कोई
ऐसा मुझको भी मिला कोई

क्या आज वो मिलन घड़ी होगी
क्या वो उस पार खड़ी होगी
यूँ सोच विचार करते करते
सहमे सहमे डरते डरते

मैंने ईश्वर का नाम लिया
साँसों को और दिल थाम लिया
और फिर जो दरवाजा खुला…

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