Tuesday, April 01, 2008

उम्मीद

माना टूटा मेरा दिल है
सूनी दिल कि महफ़िल है
नामुमकिन नहीं ज़िन्दगी लेकिन
भले थोड़ी मुश्किल है


माना नहीं घर-बार है
ठोकरें भी लगातार हैं
नामुमकिन नहीं ठिकाना जब
आशियाना ये संसार है


माना नहीं कोई संग है
न ही जीवन में उमंग है
नामुमकिन नहीं खुशियाँ जब
गुलों में इतने रंग हैं


फिर जब पथरीली राह हो
ग़म में डूबी हर आह हो
मैं चलता रहूँ, बढ़ता रहूँ
क्यों दर्द की मुझे परवाह हो

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